रामायण में श्रीराम और निषादराज का प्रसंग, श्रीराम के मित्र थे निषादराज गुह

रविवार, 29 मार्च को चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी है। इस दिन निषादराज गुह की जयंती मनाई जाती है। रामायण के अनुसार निषादराज श्रीराम के प्रिय मित्र थे। वनवास के समय निषादराज ने श्रीराम की मदद की थी। जानिए ये प्रसंग...


श्रीराम कथाकार पं. मनीष शर्मा के अनुसार स्कंद पुराण की सत्यनारायण कथा में निषादराज के पूर्व जन्म के प्रसंग बताए गए हैं। पूर्व जन्म में निषादराज एक लकड़हारे थे। उन्होंने सत्यनारायण भगवान की पूजा की और व्रत किया। इसके प्रभाव से अगले जन्म में वे राजा बने। इसके बाद वाले जन्म में त्रेतायुग में भीलों के राजा निषादराज गुह और उन्हें श्रीराम के प्रिय मित्र बने।


रामायण में श्रीराम, सीता और लक्ष्मण वनवास के लिए अयोध्या से निकले तो वन में गंगा नदी के किनारे पहुंच गए। विश्राम के लिए सभी वही ठहर गए थे। जब ये खबर निषादराज गुह को मिली तो वे अपनी साथियों के साथ भगवान के दर्शन करने वहां आ गए। श्रीराम के भेंट देने के लिए फल, कंदमूल ले आए। 


श्रीराम निषादराज को अपना प्रिय मित्र मानते थे। निषादराज ने श्रीराम से कहा कि आप कृपा करके मेरे गांव श्रृंगवेरपुर चले और मुझे सेवा का अवसर प्रदान कीजिए।


श्रीराम ने कहा कि प्रिय मित्र मुझे मेरे पिता की आज्ञा से चौदह वर्ष तक वन में ही ऋषि मुनियों की तरह जीवन यापन करना है। मैं अब किसी गांव या नगर के भीतर प्रवेश नहीं कर सकता। इस बात से निषादराज बहुत दुखी हुआ। तब उन्होंने एक पेड़ के नीचे कुश और कोमल पत्तों से श्रीराम के आराम करने की व्यवस्था कर दी। वहां श्रीराम विश्राम करने के लिए सो गए। निषादराज श्रीराम की ऐसी अवस्था देखकर लक्ष्मण से बोले कि महल में तो सुंदर पलंग पर भगवान विश्राम करते होंगे। यहां जमीन पर सोना पड़ रहा है। ये स्थिति देखकर निषादराज ने कहा कि लोग सच ही कहते हैं कि भाग्य ही प्रधान है। इसके बाद निषादराज ने केवट की मदद से श्रीराम, सीता और लक्ष्मण को गंगा नदी पार करवाई।